दोस्तों पेश करता हम एक ताज़ी ग़ज़ल और तस्वीर,
आपके प्रतिभाव की प्रतीक्षा सह….
एक झलक जिसने भी पायी आपकी
जिंन्दगी कैसे जीये आरामकी
जिंन्दगी कैसे जीये आरामकी
जो कला पहुचे नही उनके कदम
खाख है ऐसी कला बस नामकी
लोग कहते है मुहब्बत है हमें
है बला बर्बाद, है क्या कामकी
रातका तारा तू सपना भोर का
तू सुबह मेरी शफक तू शामकी
मेंरी नझरो से उन्हें देखे कोई
क्या पड़े उनको जरूरत जामकी
ख़ुदकुशी हो गई ख़ुशी ना पाई तो,
बात हमने ख़ास की ना आम की
प्यार से पायी ये हमने ज़िन्दगी
प्यारने ही ज़िन्दगी तम्माम की
रात तकती राह, मिलने आयेगा
ज़िन्दगी ‘दिलीप’ तेरे नाम की
खाख है ऐसी कला बस नामकी
लोग कहते है मुहब्बत है हमें
है बला बर्बाद, है क्या कामकी
रातका तारा तू सपना भोर का
तू सुबह मेरी शफक तू शामकी
मेंरी नझरो से उन्हें देखे कोई
क्या पड़े उनको जरूरत जामकी
ख़ुदकुशी हो गई ख़ुशी ना पाई तो,
बात हमने ख़ास की ना आम की
प्यार से पायी ये हमने ज़िन्दगी
प्यारने ही ज़िन्दगी तम्माम की
रात तकती राह, मिलने आयेगा
ज़िन्दगी ‘दिलीप’ तेरे नाम की
-दिलीप गज्जर